गोरख वाणी :
पवन ही जोग, पवन ही भोग,पवन इ हरै,छतीसौ रोग,
या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव!
" ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला,
मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !
"कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई !
कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी !
बदन्त गोरखनाथ सुणौ, नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई ! "
पवन ही जोग, पवन ही भोग,पवन इ हरै,छतीसौ रोग,
या पवन कोई जाणे भव्, सो आपे करता, आपे दैव!
" ग्यान सरीखा गिरु ना मिलिया, चित्त सरीखा चेला,
मन सरीखा मेलु ना मिलिया, ताथै, गोरख फिरै, अकेला !
"कायागढ भीतर नव लख खाई, दसवेँ द्वार अवधू ताली लाई !
कायागढ भीतर देव देहुरा कासी, सहज सुभाइ मिले अवनासी !
बदन्त गोरखनाथ सुणौ, नर लोइ, कायागढ जीतेगा बिरला नर कोई ! "
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